महाकवि कालिदास
महाकवि कालिदास |
महाकवि कालिदास
कलिदास जी कौन थैं ? उनके माता-पिता का क्या नाम था ? उनका जन्म कहॉं हुआ था ? इस बारे में कुछ ज्ञात नहीं हैं। उन्होंने अपने जीवन के विषय में कहीं कुछ नही लिखा है। अतः उनके बारे में जो कुछ भी कहा जाता है वह अनुमान पर आधारित है। कहा जाता है कि पत्नी विद्योत्तमा की प्रेरणा से उन्होंने मॉ काली देवी की उपासना की जिसके फलस्वरूप उन्हें कविता करने की शक्ति प्राप्त हुई और वह कालिदास जी कहलाए।
कविता शक्ति
कविता करने की शक्ति प्राप्त हो जाने के बाद जब वे घर लौटे तब अपनी पत्नी से कहा- अनावृतं कपाटं द्वारं देहि, (दरवाजा खोलो) पत्नी ने कहा ,अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ।, ( वाणी में कुछ विशेषता है) कालिदास ने यह तीन काव्य ग्रन्थों की रचना की।इसे भी जानिये।
अस्ति से कुमार सम्भव के प्रथम श्लोक कश्चित् से मेघदूत के प्रथम श्लोक
और वाक् से रघुवंश के प्रथम श्लोक की रचना की।
महाकवि कालिदास ई0पू0 प्रथम शताब्दी में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के राजकवि थें। ये शिव-भक्त थे। उनके ग्रन्थों के मंगल श्लोकों से इस बात की पुष्टि होती है। मेघदूत और रघुवंश के वर्णनों से ज्ञात होता है कि उन्होंने भारतवर्ष की विस्तृत यात्रा की थी। इसी कारण उनके भौगोलिक वर्णन सत्य,स्वाभाविक ओर मनोरम हुए।
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रचनाएॅ-
महाकाव्य - रघुवंश, कुमारसम्भव
नाटक - अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र
खण्डकाव्य या गीतकाव्य - ऋतुसंहार, मेघदूत।
म्हाकवि कालिदास जी के ग्रन्थों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि उन्होंने वेदों, उपनिषदों, दर्शनों, रामायण, महाभारत, गीता, पुरणों, शास्त्रीय संगीत, ज्योतिष, व्याकरण, एवं छन्दशास्त्र आदि का गहन अध्ययन किया था।
महाकवि कालिदास अपनी रचनाओं के कारण सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं। उनके कवि ह्दय में भारतीय संस्कृत के प्रति लगाव था। अभिज्ञानशाकुन्तल में शकुन्तला की विदा बेला पर महर्षि कण्व द्वारा दिया गया उपदेश आज भी भारतीय समाज के लिए एक सन्देश है-
अपने गुरूजनों की सेवा करना, क्रोध के आवेश में प्रतिकूल आचरण न करण, अपने आश्रितों पर उदार रहना, अपने ऐश्वर्य पर अभिमान न करना, इस प्रकार आचरण करने वाली स्त्रियों गृहलक्ष्मी के पद को प्राप्त करती हैं।
महाकवि कालिदास का प्रकृति के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। वे प्रकृति को सजीव और मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार मानव के समान वे भी सुख-दुःख का अनुभव करती है। शकुन्तला की विदाई बेला पर आश्रम के पशु-पक्षी भी व्याकुल हो जाते हैं-
महाकवि कालिदास का प्रकृति के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। वे प्रकृति को सजीव और मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार मानव के समान वे भी सुख-दुःख का अनुभव करती है। शकुन्तला की विदाई बेला पर आश्रम के पशु-पक्षी भी व्याकुल हो जातें हैं-
हिरणी कोमल कुश खाना छोड़ देती है, मोर नाचना बन्द कर देते हैं और लताएॅ अपने पीले पत्ते गिराकर मानों अपनी प्रिय सखी के वियोग में अश्रुपात ( ऑसू गिराने ) करने लगती हैं।
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अभिज्ञानशाकुन्तल
कालिदास अपनी उपमाओं के लिए भी संसार में प्रसिद्ध हैं। उनकी उपमाएॅ अत्यन्त मनोरम हैं और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। अभिज्ञानशाकुन्तल के चतुर्थ अंक में कालिदास ने शकुन्तला की विदाई बेला पर प्रकृति द्वारा शकुन्तला को दी गयी भेंट का मेनोहारी चित्रण किया है।किसी वृक्ष ने चन्द्र्रमा के तुल्य श्वेत मांगलिक रेशमी वस्त्र दिया। किसी ने पैरों को रंगने योग्य आलक्तक (आलता महावर) प्रकट किया । अन्य वृक्षों ने कलाई तक उठे हुए सुन्दर किसलयों (कोपलों) की प्रतिस्पर्धा करने वाले, वन देवता के करतलों (हथेलियों) से आभूषण दिये।
कालिदास अपने नाटक अभिज्ञानशाकुन्तल के कारण भारत में ही नही विश्व में सर्वश्रेष्ठ नाटककार माने जाते हैं। भारतीय समालोचकों ने कालिदास का अभिज्ञानशाकुन्तल नाटक सभी नाटकों में सर्वश्रेष्ठ बताया है-
काव्येषु नाटक रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला
संसार की सभी भाषाओं में कालिदस की इस रचना का अनुवाद हुआ है। जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान गेटे अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक को पढकर भाव विभोर हो उठे और कहा-
यदि स्वर्गलोक और मर्त्यलोक को एक ही स्थान पर देखना हो तो मेरे मुहँ से सहसा एक ही नाम निकल पड़ता है शकुन्तला.............
म्हाकवि कालिदास जी को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है। कालिदास और संस्कृत साहित्य का अटूट सम्बन्ध है। जिस प्रकार रामायण और महाभारत संस्कृत कवियों के आधार हैं उसी प्रकार कालिदास के काव्य और नाटक आज भी कवियों के लिए अनुकरणीय बने हैं।
तो दोस्तों यह कालिदास जी का कुछ जानकारी है। आप लोंगो को पसन्द आएगी ।
धन्यवाद!
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