तुलसीदास जी के 10 महत्वपूर्ण दोहें (अर्थ सहित)
तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के महान कवि थे। इन्होनें श्रीरामचारित मानस की रचना कि हैं। मैं आप लोगों को तुलसीदास जी के 10 महत्वपूर्ण दोहें (अर्थ सहित) बता रहा हूॅ। तो चलिए शुरू करते है।
काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।
तौं लौं पण्डित मूरखॉ, तुलसी एक समान।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते है जब तक व्यक्ति के मन में कातम कि भावना, गुस्सा, अंहकार, और लालच भरे हुए होते है तब तक एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख में कोंई अंतर नही होता है दोनों एक ही जैसे होते है।
मुखियामुखु सो चाहिऐ, खान पान कहूॅ एक।
पालइपोषइ सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है लेकिन विवेकपूर्वक अंगों का पालन-पोषण करता है
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवके।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते है कि विपत्ति में अर्थात मुश्किल वकत में यें चीजे मनुष्य का साथ देती है। ज्ञान विनम्रता पूर्वक व्यवाहार विवेक साहस अच्छे कर्म सत्य और राम(भगवान) का नाम ।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते है, भगवान राम पर विशवास करके चैन कि बासुरी बजाओ इस संसार में कुछ भी अनहोनी नही होगी और जो होना है उसे कोइ्र्र रोक नही सकता।
तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते हैं, कि वर्षा में मेंढकसें के टार्राने की आवाज इतनी ज्यादा हो जाती है कि कोयल की मीठी वाणी उनके शोर में दब जाती है इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है अर्थात जब धूर्त और मूर्खो का बोलबाला हो जाए तब समझदार व्यक्ति कि बात पर कोई ध्यान नही देता है।
तुलसी इस संसार में, भांति-भांतित के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते है, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते है आप सबसे हॅस कर मिलो और बोलो जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे ही आप भी भव सागर को पार कर लो।
आवत ही हरषै नही नैनन नही स्नेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
अर्थः- तुलसीदास जी कहते है कि जिस स्थान या जिस घर में आपके जाने से लोग खुश नही होते हो और उन लोगों की ऑखो में आपके लिए न तो प्रेम और न ही स्नेह वहॉ हम लोगो को कभी नही जाना चाहिए चाहे वहॉ धन की वर्षा ही हो ।
तुलसी नर का क्या बडा, समय बडा बलवान।
भीलां लूटी गोपियों, वही अर्जुन वही बाण।।
अर्थः-तुलसीदास जी कहते है कि मनुष्य कभी बडा नही बल्कि समय उसे बडा और बलवान बना देता है जैसे एक समय संसार के महान धर्नुधर भीलो के हाथों लुट गया और भीलो के हाथों गोपीयो को भी नही बचा पया।
लसी पावस के समय, धरी कोकीलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन।।
अर्थः-कबीरदास जी कहते है। कि बारिश के समय मेढको कि टर्राने की आवाज इतनी तेज हो जाती है कि कोयल कि मीठी बोली दब जाती है और मौन धारण कर लेती है। कोयल कहती है कि अब तो मेढक बोलने लगे है उनकी आवाज के सामने हमें कौन पूछेगा।
सरनागत कहूॅ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।।
अर्थः-जो मनुष्य अपने अहित न हो जाये ऐसा सोचकर शरण में आये हुए
का त्याग कर देते हैं वे पापमय होते हैं वास्तस में तो उनका दर्शन भी उचित नही होता।
तब केवट ऊॅचे चढि घाई। कहेउ भरत सन भुजा उठाई।।
नाथ देखिअहिं बिटप बिसाला। पाकरि जंबु रसाल तमाला।।
अर्थः- तब केवट दौडकर ऊॅचे चढ गसर और भुजा उठाकर भरतजी से कहने लगा हे नाा ये जो पाकर जामुन, आम और तमाल के विशाल वृक्ष दिखाई देते है।
नाथ देखिअहिं बिटप बिसाला। पाकरि जंबु रसाल तमाला।।
अर्थः- तब केवट दौडकर ऊॅचे चढ गसर और भुजा उठाकर भरतजी से कहने लगा हे नाा ये जो पाकर जामुन, आम और तमाल के विशाल वृक्ष दिखाई देते है।
तो ये थे तुलसीदास के 10 महत्वपूर्ण दोहें (अर्थ सहित) है। मै उम्मीद करता हूॅ। कि आप लोगो को पसन्द आएगा।
ramayan kisne likhi thi
ReplyDeletekya aapko pta hai